Seven Cleansing Chakra Mantras


LAM — Root Chakra

The cleansing mantra chanted for your Root Chakra, which keeps us grounded and linked to the earth.
“I am strong, supported, and abundant.”

VAM — Sacral Chakra

The cleansing mantra for your Sacral Chakra, which is associated with sexuality, pleasure and creativity.
“I am the creator of my entire reality.”

RAM — Solar Plexus Chakra

This opens your Solar Plexus Chakra, the seat of your personal power.
“Sometimes letting go is the most empowering choice.”

YAM— Heart Chakra

The cleansing mantra for your Heart Chakra. You give and receive love through the energy center that is your heart chakra.
“Giving equals receiving.”

HAM — Throat Chakra

The mantra to unblock your Throat Chakra.
“I am in alignment with my truth. I speak with clarity and intention.”

AUM (or OM) — Third Eye Chakra

This opens your Third Eye Chakra, which is at the center of your forehead and is directly in line with the center of your brain.
“I am in connection with my spirit and I trust my intuition.”

OM or AH — Crown Chakra

The mantras for your Crown Chakra, the connection to the divine.
“I surrender to the highest and best that seeks to emerge through me.”

मूलाधार चक्र - मंत्र : लं

इस चक्र के जाग्रत होने पर व्यक्ति के भीतर वीरता, निर्भीकता और आनंद का भाव जाग्रत हो जाता है। सिद्धियां प्राप्त करने के लिए वीरता, निर्भीकता और जागरूकता का होना जरूरी है।

स्वाधिष्ठान चक्र- मंत्र : वं

इसके जाग्रत होने पर क्रूरता, गर्व, आलस्य, प्रमाद, अवज्ञा, अविश्वास आदि दुर्गणों का नाश
होता है। सिद्धियां प्राप्त करने के लिए जरूरी है कि उक्त सारे दुर्गुण समाप्त हों तभी सिद्धियां आपका द्वार खटखटाएंगी।

मणिपुर चक्र - मंत्र : रं

इसके सक्रिय होने से तृष्णा, ईर्ष्या, चुगली, लज्जा, भय, घृणा, मोह आदि कषाय-कल्मष दूर हो जाते हैं। यह चक्र मूल रूप से आत्मशक्ति प्रदान करता है। सिद्धियां प्राप्त करने के लिए आत्मवान होना जरूरी है। आत्मवान होने के लिए यह अनुभव करना जरूरी है कि आप शरीर नहीं, आत्मा हैं।
आत्मशक्ति, आत्मबल और आत्मसम्मान के साथ जीवन का कोई भी लक्ष्य दुर्लभ नहीं।

अनाहत चक्र- मंत्र : यं

इसके सक्रिय होने पर लिप्सा, कपट, हिंसा, कुतर्क, चिंता, मोह, दंभ, अविवेक और अहंकार समाप्त हो जाते हैं। इस चक्र के जाग्रत होने से व्यक्ति के भीतर प्रेम और संवेदना का जागरण होता है। इसके जाग्रत होने पर व्यक्ति के समय ज्ञान स्वत: ही प्रकट होने लगता है। व्यक्ति अत्यंत आत्मविश्वस्त, सुरक्षित, चारित्रिक रूप से जिम्मेदार एवं भावनात्मक रूप से संतुलित व्यक्तित्व बन जाता है। ऐसा व्यक्ति अत्यंत हितैषी एवं बिना किसी स्वार्थ के मानवता प्रेमी एवं सर्वप्रिय बन जाता है।

विशुद्ध चक्र- मंत्र : हं

इसके जाग्रत होने कर 16 कलाओं और 16 विभूतियों का ज्ञान हो जाता है। इसके जाग्रत होने से जहां भूख और प्यास को रोका जा सकता है वहीं मौसम के प्रभाव को भी रोका जा सकता है।

आज्ञाचक्र : मंत्र :

यहां अपार शक्तियां और सिद्धियां निवास करती हैं। इस आज्ञा चक्र का जागरण होने से ये सभी शक्तियां जाग पड़ती हैं और व्यक्ति सिद्धपुरुष बन जाता है।

सहस्रार चक्र : मंत्र :

शरीर संरचना में इस स्थान पर अनेक महत्वपूर्ण विद्युतीय और जैवीय विद्युत का संग्रह है। यही मोक्ष का द्वार है।

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